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इक हुजूम-ए-ग़म-ओ-कुलफ़त है ख़ुदा ख़ैर करे | शाही शायरी
ek hujum-e-gham-o-kulfat hai KHuda KHair kare

ग़ज़ल

इक हुजूम-ए-ग़म-ओ-कुलफ़त है ख़ुदा ख़ैर करे

ग़ुलाम भीक नैरंग

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इक हुजूम-ए-ग़म-ओ-कुलफ़त है ख़ुदा ख़ैर करे
जान पर नित-नई आफ़त है ख़ुदा ख़ैर करे

जाए-माँदन हमें हासिल है न पाए-रफ़तन
कुछ मुसीबत सी मुसीबत है ख़ुदा ख़ैर करे

आ चला उस बुत-ए-अय्यार की बातों का यक़ीं
सादगी अपनी क़यामत है ख़ुदा ख़ैर करे

रहनुमाओं को नहीं ख़ुद भी पता रस्ते का
राह-रौ पैकर-ए-हैरत है ख़ुदा ख़ैर करे