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इक फ़साना सुन गए इक कह गए | शाही शायरी
ek fasana sun gae ek kah gae

ग़ज़ल

इक फ़साना सुन गए इक कह गए

फ़ानी बदायुनी

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इक फ़साना सुन गए इक कह गए
मैं जो रोया मुस्कुरा कर रह गए

या तिरे मोहताज हैं ऐ ख़ून-ए-दिल
या इन्हीं आँखों से दरिया बह गए

मौत उन का मुँह ही तकती रह गई
जो तिरी फ़ुर्क़त के सदमे सह गए

तू सलामत है तो हम ऐ दर्द-ए-दिल
मर ही जाएँगे जो जीते रह गए

फिर किसी की याद ने तड़पा दिया
फिर कलेजा थाम कर हम रह गए

उठ गए दुनिया से 'फ़ानी' अहल-ए-ज़ौक़
एक हम मरने को ज़िंदा रह गए