इक फ़साना सुन गए इक कह गए
मैं जो रोया मुस्कुरा कर रह गए
या तिरे मोहताज हैं ऐ ख़ून-ए-दिल
या इन्हीं आँखों से दरिया बह गए
मौत उन का मुँह ही तकती रह गई
जो तिरी फ़ुर्क़त के सदमे सह गए
तू सलामत है तो हम ऐ दर्द-ए-दिल
मर ही जाएँगे जो जीते रह गए
फिर किसी की याद ने तड़पा दिया
फिर कलेजा थाम कर हम रह गए
उठ गए दुनिया से 'फ़ानी' अहल-ए-ज़ौक़
एक हम मरने को ज़िंदा रह गए
ग़ज़ल
इक फ़साना सुन गए इक कह गए
फ़ानी बदायुनी