इक आलम-ए-हैरत है फ़ना है न बक़ा है
हैरत भी ये हैरत है कि क्या जानिए क्या है
सौ बार जला है तो ये सौ बार बना है
हम सोख़्ता-जानों का नशेमन भी बला है
होंटों पे तबस्सुम है कि इक बर्क़-ए-बला है
आँखों का इशारा है कि सैलाब-ए-फ़ना है
सुनता हूँ बड़े ग़ौर से अफ़्साना-ए-हस्ती
कुछ ख़्वाब है कुछ अस्ल है कुछ तर्ज़-ए-अदा है
है तेरे तसव्वुर से यहाँ नूर की बारिश
ये जान-ए-हज़ीं है कि शबिस्तान-ए-हिरा है
ग़ज़ल
इक आलम-ए-हैरत है फ़ना है न बक़ा है
असग़र गोंडवी