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इक आलम-ए-हैरत है फ़ना है न बक़ा है | शाही शायरी
ek aalam-e-hairat hai fana hai na baqa hai

ग़ज़ल

इक आलम-ए-हैरत है फ़ना है न बक़ा है

असग़र गोंडवी

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इक आलम-ए-हैरत है फ़ना है न बक़ा है
हैरत भी ये हैरत है कि क्या जानिए क्या है

सौ बार जला है तो ये सौ बार बना है
हम सोख़्ता-जानों का नशेमन भी बला है

होंटों पे तबस्सुम है कि इक बर्क़-ए-बला है
आँखों का इशारा है कि सैलाब-ए-फ़ना है

सुनता हूँ बड़े ग़ौर से अफ़्साना-ए-हस्ती
कुछ ख़्वाब है कुछ अस्ल है कुछ तर्ज़-ए-अदा है

है तेरे तसव्वुर से यहाँ नूर की बारिश
ये जान-ए-हज़ीं है कि शबिस्तान-ए-हिरा है