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इधर महसूस होती है कमी उस की | शाही शायरी
idhar mahsus hoti hai kami uski

ग़ज़ल

इधर महसूस होती है कमी उस की

अज़हर अब्बास

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इधर महसूस होती है कमी उस की
उधर मैं भूल जाता हूँ गली उस की

मैं दरिया हो भी जाऊँगा तो क्या होगा
मुझे मा'लूम है जब तिश्नगी उस की

वो जिस की रात-दिन तस्बीह करते हैं
कभी देखी नहीं तस्वीर भी उस की

जहाँ जाए हमें भी साथ ले जाए
कहीं बे-घर न कर दे बे-घरी उस की

वो अक्सर ख़ाली घर में आता जाता है
कि जैसे चीज़ कोई रह गई उस की

गुज़रते वक़्त की जब बात करता है
हमेशा बंद होती है घड़ी उस की