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हुज़ूर-ए-यार भी आँसू निकल ही आते हैं | शाही शायरी
huzur-e-yar bhi aansu nikal hi aate hain

ग़ज़ल

हुज़ूर-ए-यार भी आँसू निकल ही आते हैं

मोहम्मद दीन तासीर

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हुज़ूर-ए-यार भी आँसू निकल ही आते हैं
कुछ इख़्तिलाफ़ के पहलू निकल ही आते हैं

मिज़ाज एक नज़र एक दिल भी एक सही
मुआमलात-ए-मन-ओ-तू निकल ही आते हैं

हज़ार हम-सुख़नी हो हज़ार हम-नज़री
मक़ाम-ए-जुम्बिश-ए-अब्रू निकल ही आते हैं

हिना-ए-नाख़़ुन-ए-पा हो कि हल्क़ा-ए-सर-ए-ज़ुल्फ़
छुपाओ भी तो ये जादू निकल ही आते हैं

जनाब-ए-शैख़ वज़ू के लिए सही लेकिन
किसी बहाने लब-ए-जू निकल ही आते हैं

मता-ए-इश्क़ वो आँसू जो दिल में डूब गए
ज़मीं का रिज़्क़ जो आँसू निकल ही आते हैं