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हुस्न से आँख लड़ी हो जैसे | शाही शायरी
husn se aankh laDi ho jaise

ग़ज़ल

हुस्न से आँख लड़ी हो जैसे

उनवान चिश्ती

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हुस्न से आँख लड़ी हो जैसे
ज़िंदगी चौंक पड़ी हो जैसे

हाए ये लम्हा तिरी याद के साथ
कोई रहमत की घड़ी हो जैसे

राह रोके हुए इक मुद्दत से
कोई दोशीज़ा खड़ी हो जैसे

उफ़ ये ताबानी-ए-माह-ओ-अंजुम
रात सहरे की लड़ी हो जैसे

उन को देखा तो हुआ ये महसूस
जान में जान पड़ी हो जैसे

मुझ से खुलते हुए शरमाते हैं
इक गिरह दिल में पड़ी हो जैसे

उफ़ ये अंदाज़-ए-शिकस्त-ए-अरमाँ
शाख़-ए-गुल टूट पड़ी हो जैसे

उफ़ ये अश्कों का तसलसुल 'उनवाँ'
कोई सावन की झड़ी हो जैसे