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हुस्न पर ज़ेबा नहीं ये लन-तरानी आप की | शाही शायरी
husn par zeba nahin ye lan-tarani aap ki

ग़ज़ल

हुस्न पर ज़ेबा नहीं ये लन-तरानी आप की

लाला माधव राम जौहर

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हुस्न पर ज़ेबा नहीं ये लन-तरानी आप की
चार दिन की चाँदनी है नौजवानी आप की

हम भी कुछ मुँह से जो कह बैठें तो फिर कितनी रहे
देखिए अच्छी नहीं ये बद-ज़बानी आप की

कुछ समझ में हाल ये आता नहीं हैरान हूँ
आज है कैसी ये मुझ पर मेहरबानी आप की

बाज़ आए हम ये अपना-आप छल्ला लीजिए
हर किसी के हाथ में है अब निशानी आप की

राह में भी देख कर मुँह फेर लेते हैं हुज़ूर
आज कल है किस क़दर ना-मेहरबानी आप की

दो घड़ी इक रंग पर क़ाएम नहीं हुस्न-ए-शबाब
क्या मुसव्विर खींचे तस्वीर-ए-जवानी आप की

आब-ए-हैवाँ है कहीं ज़हर-ए-हलाहल है कहीं
तल्ख़-गोई आप की शीरीं-ज़बानी आप की

ख़्वाब में हम को न आने देते तो हम जानते
की रक़ीबों ने ये कैसी पासबानी आप की

अपने मरने का नहीं ग़म रंज है इस बात का
आज उँगली से उतरती है निशानी आप की

हाल-ए-दिल सुनते नहीं ये कह के ख़ुश कर देते हैं
फिर कभी फ़ुर्सत में सुन लेंगे कहानी आप की

हम को ये दौलत कभी मिलती तो हम भी जानते
होगी जिस के वास्ते होगी जवानी आप की