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हुस्न ओ उल्फ़त में ख़ुदा ने रब्त पैदा कर दिया | शाही शायरी
husn o ulfat mein KHuda ne rabt paida kar diya

ग़ज़ल

हुस्न ओ उल्फ़त में ख़ुदा ने रब्त पैदा कर दिया

जलील मानिकपूरी

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हुस्न ओ उल्फ़त में ख़ुदा ने रब्त पैदा कर दिया
दर्द-ए-दिल मुझ को दिया तुम को मसीहा कर दिया

ख़ूब की तक़्सीम तू ने ऐ ख़याल-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार
दिल को नज़्र-ए-दाग़ सर को वक़्फ़-ए-सौदा कर दिया

जान ले लेना जलाना खेल है माशूक़ का
आँख से मारा लब-ए-नाज़ुक से ज़िंदा कर दिया

मुझ को शिकवा है कि दिल का ख़ून क़ातिल ने किया
दिल ये कहता है मुझे क़तरे से दरिया कर दिया

नाज़ हो या दिलबरी अफ़्सूँ हो या जादूगरी
सब को क़ुदरत ने तिरी चितवन का हिस्सा कर दिया

दिल इधर रुख़्सत हुआ होश उस तरफ़ चलते हुए
किस की आँखों ने ये दर-पर्दा इशारा कर दिया

मैं कहाँ चाहत कहाँ ये सब करिश्मे दिल के हैं
तुम पे ख़ुद शैदा हुआ मुझ को भी शैदा कर दिया

मर्हबा ऐ साक़ी-ए-जादू-नज़र सद-मर्हबा
मस्त आँखों ने मिरा नश्शा दो-बाला कर दिया

दिल तड़पता है तो कुछ तस्कीन होती है 'जलील'
जी बहलने को ख़ुदा ने दर्द पैदा कर दिया