हुस्न में आफ़त-ए-जहाँ तू है
चाल में ख़ंजर-ए-रवाँ तू है
दोनों ज़ालिम हैं फ़र्क़ इतना है
आसमाँ पीर है जवाँ तू है
बे-कहे दिल का हाल रौशन है
ऐ ख़मोशी मिरी ज़बाँ तू है
अपने घर में ख़याल में दिल में
एक हो कर कहाँ कहाँ तू है
दोनों जानिब से पर्दा-दारी है
मैं हूँ गुमनाम बे-निशाँ तू है
सब से प्यारी है जान दुनिया में
जान से बढ़ के जान-ए-जाँ तू है
आईने पर नहीं ये चश्म-ए-करम
अपनी सूरत का क़दर-दाँ तू है
क्या बराबर का जोड़ है ये 'जलील'
यार नाज़ुक है ना-तवाँ तू है
ग़ज़ल
हुस्न में आफ़त-ए-जहाँ तू है
जलील मानिकपूरी