हुस्न के सेहर ओ करामात से जी डरता है
इश्क़ की ज़िंदा रिवायात से जी डरता है
मैं ने माना कि मुझे उन से मोहब्बत न रही
हम-नशीं फिर भी मुलाक़ात से जी डरता है
सच तो ये कि अभी दिल को सुकूँ है लेकिन
अपने आवारा ख़यालात से जी डरता है
इतना रोया हूँ ग़म-ए-दोस्त ज़रा सा हँस कर
मुस्कुराते हुए लम्हात से जी डरता है
जो भी कहना है कहो साफ़ शिकायत ही सही
इन इशारात-ओ-किनायात से जी डरता है
हिज्र का दर्द नई बात नहीं है लेकिन
दिन वो गुज़रा है कि अब रात से जी डरता है
कौन भूला है 'नईम' उन की मोहब्बत का फ़रेब
फिर भी इन ताज़ा इनायात से जी डरता है
ग़ज़ल
हुस्न के सेहर ओ करामात से जी डरता है
हसन नईम