हुस्न के एहतिराम ने मारा
इश्क़ बे-नंग-ओ-नाम ने मारा
वादा-ए-ना-तमाम ने मारा
रोज़ की सुब्ह ओ शाम ने मारा
लरज़़िश-ए-दस्त-ए-शौक़ आह न पूछ
लग़्ज़िश-ए-नीम-गाम ने मारा
इश्क़ की सादगी तो एक तरफ़
शौक़ के एहतिमाम ने मारा
अल्लाह अल्लाह नफ़्स की आमद ओ शुद
इस पयाम ओ सलाम ने मारा
इश्क़ मरता न अपनी मौत से आह
आशिक़ान-ए-कराम ने मारा
काश वो उम्र-ए-ख़िज़्र बन जाए
जिन ख़यालात-ए-ख़ाम ने मारा
मैं नहीं बिस्मिल-ए-ख़य्याम 'जिगर'
हाफ़िज़-ए-ख़ुश-कलाम ने मारा
ग़ज़ल
हुस्न के एहतिराम ने मारा
जिगर मुरादाबादी