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हुस्न के एहतिराम ने मारा | शाही शायरी
husn ke ehtiram ne mara

ग़ज़ल

हुस्न के एहतिराम ने मारा

जिगर मुरादाबादी

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हुस्न के एहतिराम ने मारा
इश्क़ बे-नंग-ओ-नाम ने मारा

वादा-ए-ना-तमाम ने मारा
रोज़ की सुब्ह ओ शाम ने मारा

लरज़़िश-ए-दस्त-ए-शौक़ आह न पूछ
लग़्ज़िश-ए-नीम-गाम ने मारा

इश्क़ की सादगी तो एक तरफ़
शौक़ के एहतिमाम ने मारा

अल्लाह अल्लाह नफ़्स की आमद ओ शुद
इस पयाम ओ सलाम ने मारा

इश्क़ मरता न अपनी मौत से आह
आशिक़ान-ए-कराम ने मारा

काश वो उम्र-ए-ख़िज़्र बन जाए
जिन ख़यालात-ए-ख़ाम ने मारा

मैं नहीं बिस्मिल-ए-ख़य्याम 'जिगर'
हाफ़िज़-ए-ख़ुश-कलाम ने मारा