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हुस्न-ए-बेपर्दा की गर्मी से कलेजा पक्का | शाही शायरी
husn-e-be-parda ki garmi se kaleja pakka

ग़ज़ल

हुस्न-ए-बेपर्दा की गर्मी से कलेजा पक्का

असीर लखनवी

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हुस्न-ए-बेपर्दा की गर्मी से कलेजा पक्का
तेग़ की आँच से घर में मिरे खाना पक्का

जिंस-ए-दिल ले के न जाऊँ मैं किसी और के पास
आप बैआ'ना अगर दीजिए पक्का पक्का

हर तरह हाथ उठाना है जहाँ से मुश्किल
बैठ रहने को भी घर चाहिए कच्चा पक्का

है वो शाइ'र जो पढ़े बज़्म-ए-सुख़न में अशआ'र
मो'तबर है जो कचेहरी में हो चेहरा पक्का

ख़ाम-ए-तबई' से तुम्हारे है बहुत तंग 'असीर'
कीजिए वस्ल का इक़रार तो पक्का पक्का