EN اردو
हुई है हम में और इस गुल में क्या क्या मार फूलों की | शाही शायरी
hui hai hum mein aur is gul mein kya kya mar phulon ki

ग़ज़ल

हुई है हम में और इस गुल में क्या क्या मार फूलों की

क़द्र बिलगरामी

;

हुई है हम में और इस गुल में क्या क्या मार फूलों की
गले तक उठ गई गुलज़ार में दीवार फूलों की

बहार आई है गुलशन ने क़बा-ए-सब्ज़ बदली है
जवानान-ए-चमन के सर पे है दस्तार फूलों की

चमन में आज-कल उस ज़ोर से पानी बरसता है
हुई है बुलबुलों पर हर तरफ़ बौछार फूलों की

बिके हैं कौड़ियों के मोल दा'वा कर के उस गुल से
गई है आबरू क्या क्या सर-ए-बाज़ार फूलों की

रसाई 'क़द्र' की क्यूँ कर न हो इस बज़्म-ए-रंगीं में
चमन में रखते हैं सोहबत हमेशा ख़ार फूलों की