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हुए हम जब से पैदा अपने दीवाने हुए होते | शाही शायरी
hue hum jab se paida apne diwane hue hote

ग़ज़ल

हुए हम जब से पैदा अपने दीवाने हुए होते

वली उज़लत

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हुए हम जब से पैदा अपने दीवाने हुए होते
ख़ुदा को हम पहुँचते ख़ुद से बेगाने हुए होते

मज़ा रौशन-दिली का ज़िंदगानी है तजर्रुद से
हम अपने मिस्ल शबनम आब और दाने हुए होते

मूए हम इंतिज़ार-ए-नश्शा से ख़ोशों के जा यारब
हुवैदा ताक से पुर-बादा पैमाने हुए होते

होवेंगे ख़ाक वुसअ'त मशरबी की रह गई हसरत
हम अव्वल ही से मिस्ल-ए-दश्त वीराने हुए होते

रहे दुनिया में बे-ऐश और शुहूद-ए-हक़ से उक़्बा में
हुए ज़ुहहाद कोर ऐ काश के काने हुए होते

मय-ए-इरफ़ाँ का ज़र्फ़ आदम ही को था गर मलक देते
तो सात इबलीस के सरगर्म याराने हुए होते

अबस तुम मुंज़वी मस्जिद में हो ज़ुहहाद क्या हासिल
वो साहब एतकाफ़-ए-कुंज-ए-मयख़ाने हुए होते

हुए मस्तों पे गर तेग़-ए-ज़बाँ-ज़न शैख़ शेख़ी में
जो अपने नफ़्स-परवर होते मर्दाने हुए होते

अगर सद-चाक हो हात उस के लगते ऐश था 'उज़लत'
दिल-ए-उश्शाक़ सारे काश के शाने हुए होते