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हुआ दे कर दबे शो'लों को भड़काया नहीं जाता | शाही शायरी
hua de kar dabe shoalon ko bhaDkaya nahin jata

ग़ज़ल

हुआ दे कर दबे शो'लों को भड़काया नहीं जाता

सय्यद जहीरुद्दीन ज़हीर

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हुआ दे कर दबे शो'लों को भड़काया नहीं जाता
दिखा कर जाम मय प्यासों को तरसाया नहीं जाता

न ले जा दूर गुलशन से अरे सय्याद बुलबुल को
कि बीमार-ए-मोहब्बत पर सितम ढाया नहीं जाता

तिरी तर-दामनी को देख कर कुछ शक सा होता है
कि धब्बा दामन-ए-मा'सूम पर पाया नहीं जाता

हैं दोनों नूर के टुकड़े मगर हिफ़्ज़-ए-मरातिब से
सितारों को शह-ए-ख़ावर से टकराया नहीं जाता

बहारो है बुरी ये बात हम से आशिक़-ए-गुल को
दिखा के रू-ए-गुल काँटों में उलझाया नहीं जाता

न कर नश्तर-ज़नी सय्याद सादा-लौह बुलबुल पर
न जाने जो तड़पना उस को तड़पाया नहीं जाता

'ज़हीर'-ए-ख़स्ता ये भी इक उसूल पास-ए-उल्फ़त है
ज़बाँ पर कलमा-ए-शिकवा कभी लाया नहीं जाता