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होंटों पर है बात कड़ी ताज़ीरें भी | शाही शायरी
honTon par hai baat kaDi taziren bhi

ग़ज़ल

होंटों पर है बात कड़ी ताज़ीरें भी

ग़ुलाम हुसैन साजिद

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होंटों पर है बात कड़ी ताज़ीरें भी
ख़ामोशी का रंग हुईं तक़रीरें भी

ख़ौफ़ यही है आने वाली नस्लों को
एक अजूबा होंगी ये तहरीरें भी

मौसम के सौ रूप मगर इन आँखों में
ख़्वाब वही हैं ख़्वाबों की ताबीरें भी

आइंदा के साँस हमारे अपने हैं
टूट चुकीं इस वा'दे की ज़ंजीरें भी

एक अजब हैरत में गुम-सुम रहती हैं
दीवारें दीवारों पर तस्वीरें भी

पानी की ख़ामोश सदाएँ कौन सुने
ख़त्म हुईं जब मिट्टी की तासीरें भी