होगा उजाला दा'वे-दारी उस की थी
और अँधेरे से भी यारी उस की थी
शुक्र ख़ुदा का जीत गए हम जंग मगर
हम से बेहतर तो तय्यारी उस की थी
ये भी सच है मैं इस बार भी आगे था
ये भी सच है अब के बारी उस की थी
मेरे बस में रूठ के जाना था मंज़ूर
मुझे मनाना ज़िम्मेदारी उस की थी

ग़ज़ल
होगा उजाला दा'वे-दारी उस की थी
मंज़ूर देपालपुरी