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हो कुछ आसेब तो वाँ चाहिए गंडा ता'वीज़ | शाही शायरी
ho kuchh aaseb to wan chahiye ganDa tawiz

ग़ज़ल

हो कुछ आसेब तो वाँ चाहिए गंडा ता'वीज़

नज़ीर अकबराबादी

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हो कुछ आसेब तो वाँ चाहिए गंडा ता'वीज़
और जो हो इश्क़ का साया तो करे क्या ता'वीज़

दिल को जिस वक़्त ये जिन आन के लिपटा फिर तो
क्या करें वाँ वो जो लिखते हैं फ़लीता ता'वीज़

हम तो जब होश में आवें जो कहीं से पावें
यार के हाथ का बाज़ू का गले का ता'वीज़

ज़ोर ता'वीज़ का चलता तो अरब में यारो
क्या कोई एक भी मजनूँ को न देता ता'वीज़

कोहकन कोह को किस वास्ते काटा करता
देते ग़म-ख़्वार न क्या इस के तईं ला ता'वीज़

आख़िर उस के भी गया दिल का धड़कना उस रोज़
क़ब्र का तेशे ने जब उस के तराशा ता'वीज़

हम को भी कितने ही लोगों ने दिए आह 'नज़ीर'
पर किसी का कोई कुछ काम न आया ता'वीज़