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हो गया अबरू की सफ़्फ़ाकी से शोहरा यार का | शाही शायरी
ho gaya abru ki saffaki se shohra yar ka

ग़ज़ल

हो गया अबरू की सफ़्फ़ाकी से शोहरा यार का

क़द्र बिलगरामी

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हो गया अबरू की सफ़्फ़ाकी से शोहरा यार का
काम कर जाए सिपाही नाम हो सरदार का

कूचा-ए-शह-रग से क्या तेरा महल नज़दीक है
दम गले में आ के अटका है तिरे बीमार का

मिस्ल-ए-ईसा उन की ख़िदमत में रसाई हो गई
पढ़ गए कोठे पे हम ज़ीना लगा किरदार का

रात को आँखों के नीचे फिर गई तस्वीर-ए-यार
वाह क्या चमका सितारा दीदा-ए-बेदार का

'क़द्र' क्या इस्लाह-ए-'ग़ालिब' से मिरी शोहरत हुई
वो मसल है बाढ़ काटे नाम हो तलवार का