हो गया अबरू की सफ़्फ़ाकी से शोहरा यार का
काम कर जाए सिपाही नाम हो सरदार का
कूचा-ए-शह-रग से क्या तेरा महल नज़दीक है
दम गले में आ के अटका है तिरे बीमार का
मिस्ल-ए-ईसा उन की ख़िदमत में रसाई हो गई
पढ़ गए कोठे पे हम ज़ीना लगा किरदार का
रात को आँखों के नीचे फिर गई तस्वीर-ए-यार
वाह क्या चमका सितारा दीदा-ए-बेदार का
'क़द्र' क्या इस्लाह-ए-'ग़ालिब' से मिरी शोहरत हुई
वो मसल है बाढ़ काटे नाम हो तलवार का
ग़ज़ल
हो गया अबरू की सफ़्फ़ाकी से शोहरा यार का
क़द्र बिलगरामी