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हो गई बात पुरानी फिर भी | शाही शायरी
ho gai baat purani phir bhi

ग़ज़ल

हो गई बात पुरानी फिर भी

अंबरीन हसीब अंबर

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हो गई बात पुरानी फिर भी
याद है मुझ को ज़बानी फिर भी

मौजा-ए-ग़म ने तो दम तोड़ दिया
रह गया आँख में पानी फिर भी

मैं ने सोचा भी नहीं था इस को
हो गई शाम सुहानी फिर भी

चश्म-ए-नम ने उसे जाते देखा
दिल ने ये बात न मानी फिर भी

लोग अर्ज़ां हुए जाते हैं यहाँ
बढ़ती जाती है गिरानी फिर भी

बुरीदा लाए हो दरबार में तुम
याद है शो'ला-बयानी फिर भी

भूल जोते हैं मुसाफ़िर रस्ता
लोग कहते हैं कहानी फिर भी