हो गई बात पुरानी फिर भी
याद है मुझ को ज़बानी फिर भी
मौजा-ए-ग़म ने तो दम तोड़ दिया
रह गया आँख में पानी फिर भी
मैं ने सोचा भी नहीं था इस को
हो गई शाम सुहानी फिर भी
चश्म-ए-नम ने उसे जाते देखा
दिल ने ये बात न मानी फिर भी
लोग अर्ज़ां हुए जाते हैं यहाँ
बढ़ती जाती है गिरानी फिर भी
बुरीदा लाए हो दरबार में तुम
याद है शो'ला-बयानी फिर भी
भूल जोते हैं मुसाफ़िर रस्ता
लोग कहते हैं कहानी फिर भी
ग़ज़ल
हो गई बात पुरानी फिर भी
अंबरीन हसीब अंबर