हो गए आँगन जुदा और रास्ते भी बट गए
क्या हुआ ये लोग क्यूँ इक दूसरे से कट गए
ग़म ने हर इक रास्ते में खोल रक्खा था महाज़
हम भी चेहरे पर हँसी का ख़ोल ले कर डट गए
नफ़रतों की धूप झुलसाने लगी हर शख़्स को
प्यार के उस शहर में सब पेड़ कैसे कट गए
डर की जब सारी हक़ीक़त मुन्कशिफ़ हम पर हुई
ख़ुद-बख़ुद डर के सभी साए अचानक हट गए
कौन जाने किस नशेमन पर गिरी हैं बिजलियाँ
किस तरफ़ टूटे हुए तारों के ये झुरमट गए
मो'तबर होने लगीं जब बज़्म में तारीकियाँ
ख़ामुशी की ओट में हम लोग पीछे हट गए
घर से ऐ 'अंजुम' ज़रा बाहर निकल कर देखना
लोग कहते हैं कि अब तारीक बादल छट गए
ग़ज़ल
हो गए आँगन जुदा और रास्ते भी बट गए
आनन्द सरूप अंजुम