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हो चुकी बाग़ में बहार अफ़सोस | शाही शायरी
ho chuki bagh mein bahaar afsos

ग़ज़ल

हो चुकी बाग़ में बहार अफ़सोस

शाह नसीर

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हो चुकी बाग़ में बहार अफ़सोस
आह ऐ बुलबुलो हज़ार अफ़सोस

क़ाफ़िला उम्र का है पा-ब-रिकाब
ज़ीस्त का क्या है ए'तिबार अफ़सोस

मिरी रातों को देख सोख़तगी
न किया एक दिन भी यार अफ़सोस

शब से परवाने की लगन में शम्अ
सुब्ह तक रोई ज़ार ज़ार अफ़सोस

सख़्त बे-ताबी से कटी कल रात
आज भी दिल है बे-क़रार अफ़सोस

ख़ाल-ओ-ख़त को समझ के दाना-ओ-दाम
मुर्ग़-ए-दिल हो गया शिकार अफ़सोस

आह दस्त-ए-जुनूँ से ऐ नासेह
है गरेबान तार तार अफ़सोस

जान होंटों पे आ गई हमदम
लेकिन अब तक फिरा न यार अफ़सोस

उम्र ग़फ़लत में कट गई है 'नसीर'
आह अफ़सोस सद-हज़ार अफ़सोस