हो चुकी बाग़ में बहार अफ़सोस
आह ऐ बुलबुलो हज़ार अफ़सोस
क़ाफ़िला उम्र का है पा-ब-रिकाब
ज़ीस्त का क्या है ए'तिबार अफ़सोस
मिरी रातों को देख सोख़तगी
न किया एक दिन भी यार अफ़सोस
शब से परवाने की लगन में शम्अ
सुब्ह तक रोई ज़ार ज़ार अफ़सोस
सख़्त बे-ताबी से कटी कल रात
आज भी दिल है बे-क़रार अफ़सोस
ख़ाल-ओ-ख़त को समझ के दाना-ओ-दाम
मुर्ग़-ए-दिल हो गया शिकार अफ़सोस
आह दस्त-ए-जुनूँ से ऐ नासेह
है गरेबान तार तार अफ़सोस
जान होंटों पे आ गई हमदम
लेकिन अब तक फिरा न यार अफ़सोस
उम्र ग़फ़लत में कट गई है 'नसीर'
आह अफ़सोस सद-हज़ार अफ़सोस
ग़ज़ल
हो चुकी बाग़ में बहार अफ़सोस
शाह नसीर