हिज्र से वस्ल इस क़दर भारी
सुब्ह से दिल पे हौल है तारी
अपनी उफ़्ताद-ए-तब्अ क्या कहिए!
वही देरीना दिल की बीमारी
उन के चेहरे पे फ़त्ह के बा-वस्फ़
इंफ़िआल-ए-शिकस्त है तारी
दिल कई रोज़ से धड़कता है
है किसी हादसे की तय्यारी
बाज़ औक़ात अज़्म-ए-तर्क-ए-वफ़ा
ऐन मिन-जुमला-ए-वफ़ादारी
उन को तकलीफ़-ए-नाज़ देता हूँ
हाए ये ख़ू-ए-दोस्त-आज़ारी
जान-लेवा सही जराहत-ए-इश्क़
अक़्ल का ज़ख़्म है बहुत कारी
काश मुझ को हिसार में ले ले
मेरे घर की चहार-दीवारी
ग़ज़ल
हिज्र से वस्ल इस क़दर भारी
रईस अमरोहवी