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हिज्र से वस्ल इस क़दर भारी | शाही शायरी
hijr se wasl is qadar bhaari

ग़ज़ल

हिज्र से वस्ल इस क़दर भारी

रईस अमरोहवी

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हिज्र से वस्ल इस क़दर भारी
सुब्ह से दिल पे हौल है तारी

अपनी उफ़्ताद-ए-तब्अ क्या कहिए!
वही देरीना दिल की बीमारी

उन के चेहरे पे फ़त्ह के बा-वस्फ़
इंफ़िआल-ए-शिकस्त है तारी

दिल कई रोज़ से धड़कता है
है किसी हादसे की तय्यारी

बाज़ औक़ात अज़्म-ए-तर्क-ए-वफ़ा
ऐन मिन-जुमला-ए-वफ़ादारी

उन को तकलीफ़-ए-नाज़ देता हूँ
हाए ये ख़ू-ए-दोस्त-आज़ारी

जान-लेवा सही जराहत-ए-इश्क़
अक़्ल का ज़ख़्म है बहुत कारी

काश मुझ को हिसार में ले ले
मेरे घर की चहार-दीवारी