हिज्र का ग़म भी नहीं वस्ल की पर्वा भी नहीं
दिल भी पहलू में नहीं दिल की तमन्ना भी नहीं
नहीं दरकार नहीं मुझ को ग़म-ए-चारा-ए-ग़म
हाँ मैं दीवाना हूँ बे-शक मगर इतना भी नहीं
तुम न शरमाओ न घबराओ मैं कहता भी हूँ कुछ
ज़िक्र-ए-वा'दा भी नहीं ख़्वाहिश-ए-ईफ़ा भी नहीं
जोशिश-ए-गिर्या इक ए'जाज़ है वर्ना दिल-ए-ज़ार
आख़िर इक बूँद है बादल नहीं दरिया भी नहीं
बे-ख़ुदी हश्र में क्या याद दिलाऊँगा उसे
ख़ुद मुझे याद अब उस शोख़ का वादा भी नहीं
वक़्त पुर्सिश है अभी फ़ुर्सत-ए-एहसाँ है अभी
आइए मैं अभी ज़िंदा भी हूँ अच्छा भी नहीं
अब कहाँ लज़्ज़त-ए-एहसास-ए-तरक़्क़ी 'मानी'
यास में जज़र-ओ-मद-ए-दर्द-ए-तमन्ना भी नहीं
ग़ज़ल
हिज्र का ग़म भी नहीं वस्ल की पर्वा भी नहीं
मानी जायसी