हिजाब-ए-रंग-ओ-बू है और मैं हूँ
ये धोका था कि तू है और मैं हूँ
मक़ाम-ए-बे-नियाज़ी आ गया है
वो जान-ए-आरज़ू है और मैं हूँ
फ़रेब-ए-शौक़ से अक्सर ये समझा
कि वो बेगाना-ख़ू है और मैं हूँ
कभी सौदा था तेरी जुस्तुजू का
अब अपनी जुस्तुजू है और मैं हूँ
कभी देखा था इक ख़्वाब-ए-मोहब्बत
अब उस की आरज़ू है और मैं हूँ
फ़क़त इक तुम नहीं तो कुछ नहीं है
चमन है आबजू है और मैं हूँ
फिर उस के बाद है इस हू का आलम
बस इक हद तक ही तू है और मैं हूँ
ग़ज़ल
हिजाब-ए-रंग-ओ-बू है और मैं हूँ
असर लखनवी