हज़ार रंज-ए-सफ़र है हज़र के होते हुए
ये कैसी ख़ाना-बदोशी है घर के होते हुए
वो हब्स-ए-जाँ है बरसने से भी जो कम न हुआ
घुटन ग़ज़ब की है इक चश्म-ए-तर के होते हुए
मिरे वजूद को पैकर की है तलाश अभी
मैं ख़ाक हूँ हुनर-ए-कूज़ा-गर के होते हुए
सहर उजालने वाले किरन किरन के लिए
तरस रहे हैं फ़रोग़-ए-सहर के होते हुए
हर इंकिशाफ़ है इक इंकिशाफ़-ए-ला-इल्मी
कमाल-ए-बे-ख़बरी है ख़बर के होते हुए
गुरेज़ाँ मुझ से रहा है ये साया-ए-दीवार
मैं धूप धूप जला हूँ शजर के होते हुए
हम उस से मिल के करें अर्ज़-ए-हाल कुछ 'इरफ़ान'
मुहाल है ये दिल-ए-हीला-गर के होते हुए

ग़ज़ल
हज़ार रंज-ए-सफ़र है हज़र के होते हुए
इरफ़ान वहीद