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हज़ार रंज-ए-सफ़र है हज़र के होते हुए | शाही शायरी
hazar ranj-e-safar hai hazar ke hote hue

ग़ज़ल

हज़ार रंज-ए-सफ़र है हज़र के होते हुए

इरफ़ान वहीद

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हज़ार रंज-ए-सफ़र है हज़र के होते हुए
ये कैसी ख़ाना-बदोशी है घर के होते हुए

वो हब्स-ए-जाँ है बरसने से भी जो कम न हुआ
घुटन ग़ज़ब की है इक चश्म-ए-तर के होते हुए

मिरे वजूद को पैकर की है तलाश अभी
मैं ख़ाक हूँ हुनर-ए-कूज़ा-गर के होते हुए

सहर उजालने वाले किरन किरन के लिए
तरस रहे हैं फ़रोग़-ए-सहर के होते हुए

हर इंकिशाफ़ है इक इंकिशाफ़-ए-ला-इल्मी
कमाल-ए-बे-ख़बरी है ख़बर के होते हुए

गुरेज़ाँ मुझ से रहा है ये साया-ए-दीवार
मैं धूप धूप जला हूँ शजर के होते हुए

हम उस से मिल के करें अर्ज़-ए-हाल कुछ 'इरफ़ान'
मुहाल है ये दिल-ए-हीला-गर के होते हुए