हयात-ओ-काएनात पर किताब लिख रहे थे हम
जहाँ जहाँ सवाब था अज़ाब लिख रहे थे हम
हमारी तिश्नगी का ग़म रक़म था मौज मौज पर
समुंदरों के जिस्म पर सराब लिख रहे थे हम
सवाल था कि जुस्तुजू अज़ीम है कि आरज़ू
सो यूँ हुआ कि उम्र भर जवाब लिख रहे थे हम
सुलगते दश्त, रेत और बबूल थे हर एक सू
नगर नगर, गली गली गुलाब लिख रहे थे हम
ज़मीन रुक के चल पड़ी, चराग़ बुझ के जल गए
कि जब अधूरे ख़्वाबों का हिसाब लिख रहे थे हम
मुझे बताना ज़िंदगी वो कौन सी घड़ी थी जब
ख़ुद अपने अपने वास्ते अज़ाब लिख रहे थे हम
चमक उठा हर एक पल, महक उठे क़लम दवात
किसी के नाम दिल का इंतिसाब लिख रहे थे हम
ग़ज़ल
हयात-ओ-काएनात पर किताब लिख रहे थे हम
अज़ीज़ नबील