हवस ये रह गई दिल में कि मुद्दआ' न मिला
बहुत जहान में ढूँढा पर आश्ना न मिला
हुआ है कौन सा मा'शूक़ बा-वफ़ा ऐ दिल
गिला अबस है अगर वो मिला मिला न मिला
अजीब क़िस्मत-ए-बद थी शब-ए-फ़िराक़ में हम
कमाल ढूँढ फिरे ख़ाना-ए-क़ज़ा न मिला
न दे तू हाथ से हूँ ज़ोफ़ से मैं रंग-ए-हिना
हवा-ए-शौक़-ए-फ़ना में जहाँ उड़ा न मिला
जवाब देगी भला रोज़-ए-बाज़-पुर्स तो क्या
उड़ा उड़ा के हमें ख़ाक में सबा न मिला
वो कुश्ता-ए-निगह-ए-क़हर था कि महशर में
मिरे जलाने को अहकाम-ए-दिल-रुबा न मिला
ग़रीक़-ए-बहर-ए-सितम उम्र की हुई कश्ती
बहुत सा हम ने पुकारा प ना-ख़ुदा न मिला
कमाल-ओ-ऐश-ओ-जवानी-ओ-मुल्क-ओ-माल-ओ-तरब
ये सब मिले हमें पर यार बा-वफ़ा न मिला
अजीब जोश-ए-जुनूँ में हुई थी पामाली
कि एक आबला तक दोस्त-दार-ए-पा न मिला
चुभे हज़ार तमन्ना से क्यूँ न बे-खटके
कि ख़ार को कोई हम सा बरहना-पा न मिला
बहुत सी करते रहे बाग़-ए-दहर में गुल-गश्त
पर अपने बुलबुल-ए-दिल को 'नसीम' सा न मिला

ग़ज़ल
हवस ये रह गई दिल में कि मुद्दआ' न मिला
नसीम देहलवी