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हवस-ए-ख़लवत-ए-ख़ुर्शीद-ओ-निशाँ और सही | शाही शायरी
hawas-e-KHalwat-e-KHurshid-o-nishan aur sahi

ग़ज़ल

हवस-ए-ख़लवत-ए-ख़ुर्शीद-ओ-निशाँ और सही

रविश सिद्दीक़ी

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हवस-ए-ख़लवत-ए-ख़ुर्शीद-ओ-निशाँ और सही
दूर है सुब्ह तो ये ख़्वाब-ए-गिराँ और सही

कुछ शिकस्ता सा है रंगीनी-ओ-निकहत का तिलिस्म
यही बेदाद-ए-ख़िज़ाँ है तो ख़िज़ाँ और सही

मरहले दानिश-ए-हाज़िर के तो सब ख़त्म हुए
इक क़दम जानिब-ए-अक़्लीम-ए-गुमाँ और सही

मेरी पलकें भी गिराँ-बार रही हैं ऐ दोस्त
अब ये आँसू तिरे दामन पे गिराँ और सही

जल्वा-ए-हुस्न-ए-बुताँ से है अगर दिल का ज़ियाँ
ऐ ख़ुदा-वंद मिरे दिल का ज़ियाँ और सही

सैंकड़ों रुख़ हैं मोहब्बत की कहानी के 'रविश'
एक अंदाज़-ए-हदीस-ए-दिगराँ और सही