हवा ने छीन लिया आ के मेरे होंटों से
वो एक गीत जो मैं गुनगुना रहा था अभी
वो जा के नींद के पहलू में मुझ से छुपने लगा
मैं उस को अपनी कहानी सुना रहा था अभी
कि दिल में आ के नया तीर हो गया पैवस्त
पुराना ज़ख़्म मैं उस को दिखा रहा था अभी
बरस रही थी ज़मीं पर अजीब मदहोशी
न जाने कौन फ़ज़ाओं में गा रहा था अभी
उफ़ुक़ के पार ये डूबा है किस तरह सूरज
यहीं पे बैठ के बातें बना रहा था अभी
उठा के धूप ने घर से मुझे निकाल दिया
मैं इंतिज़ार की शमएँ जला रहा था अभी
जो सब को हँसने की तल्क़ीन करता रहा है
वो मेरे सामने आँसू बहा रहा था अभी
वो जिस का नाम पड़ा है ख़मोश लोगों में
यहाँ पे लफ़्ज़ों के दरिया बहा रहा था अभी
ग़ज़ल
हवा ने छीन लिया आ के मेरे होंटों से
फ़व्वाद अहमद