हवा महक उठी रंग-ए-चमन बदलने लगा
वो मेरे सामने जब पैरहन बदलने लगा
बहम हुए हैं तो अब गुफ़्तुगू नहीं होती
बयान-ए-हाल में तर्ज़-ए-सुख़न बदलने लगा
अंधेरे में भी मुझे जगमगा गया है कोई
बस इक निगाह से रंग-ए-बदन बदलने लगा
ज़रा सी देर को बारिश रुकी थी शाख़ों पर
मिज़ाज-ए-सोसन-ओ-सर्व-ओ-समन बदलने लगा
फ़राज़-ए-कोह पे बिजली कुछ इस तरह चमकी
लिबास-ए-वादी-ओ-दश्त-ओ-दमन बदलने लगा
ग़ज़ल
हवा महक उठी रंग-ए-चमन बदलने लगा
परवीन शाकिर