हवा-ए-तेज़ के आगे कहाँ रहेगा कोई
दिये पे वक़्त सदा मेहरबाँ रहेगा कोई
ऐ दोस्त हम भी ज़मीं पर धुएँ की सूरत हैं
फ़ज़ा में कितना धुआँ है धुआँ रहेगा कोई
अजीब नक़्श बनाए हैं वहशत-ए-दिल ने
मगर ये रेत है इस पर निशाँ रहेगा कोई
मकान-ए-दिल की सभी रौनक़ें मकीनों से
मकीन ही न रहे तो मकाँ रहेगा कोई
सुराग़ लाएगी कितने नए जहानों का
ये आगही का सफ़र राएगाँ रहेगा कोई
जो दिल की झील ही जज़्बों से हो गई ख़ाली
तो अपनी आँख में आब-ए-रवाँ रहेगा कोई
हम अपने साथ ही ले जाएँगे जहाँ अपना
हमारे बअ'द तो यूँही जहाँ रहेगा कोई
ग़ज़ल
हवा-ए-तेज़ के आगे कहाँ रहेगा कोई
अज़हर अब्बास