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हौसला वज्ह-ए-तपिश-हा-ए-दिल-ओ-जाँ न हुआ | शाही शायरी
hausla wajh-e-tapish-ha-e-dil-o-jaan na hua

ग़ज़ल

हौसला वज्ह-ए-तपिश-हा-ए-दिल-ओ-जाँ न हुआ

साहिर देहल्वी

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हौसला वज्ह-ए-तपिश-हा-ए-दिल-ओ-जाँ न हुआ
शोला-ए-शम्अ' तिरी बज़्म में रक़्साँ न हुआ

हुस्न था मस्त-ए-अज़ल जाम-ए-अना लैला से
तन की उर्यानी से मजनूँ कोई उर्यां न हुआ

लब-ए-मंसूर से दी किस ने अनल-हक़ की सदा
तू अगर पर्दा-ए-पिंदार में पिन्हाँ न हुआ

हम रहे चश्म-ए-इनायत से हमेशा महरूम
दिल-नशीं तीर-ए-नज़र का कोई पैकाँ न हुआ

चश्म-ए-जानाँ में समाते हैं समाने वाले
मौत से आँख लड़ाना कोई आसाँ न हुआ

दिल है बुत-ख़ाना-ए-असनाम-ए-ख़याली 'साहिर'
तू वो काफ़िर है कि भूले से मुसलमाँ न हुआ