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हौसला शर्त-ए-वफ़ा क्या करना | शाही शायरी
hausla shart-e-wafa kya karna

ग़ज़ल

हौसला शर्त-ए-वफ़ा क्या करना

किश्वर नाहीद

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हौसला शर्त-ए-वफ़ा क्या करना
बंद मुट्ठी में हवा क्या करना

जब कोई सुनता न हो बोलना क्या
क़ब्र में शोर बपा क्या करना

क़हर है लुत्फ़ की सूरत आबाद
अपनी आँखों को भी वा क्या करना

दर्द ठहरेगा वफ़ा की मंज़िल
अक्स शीशे से जुदा क्या करना

दिल के ज़िंदाँ में है आराम बहुत
वुसअ'त-ए-दश्त-नुमा क्या करना

शम-ए-कुश्ता की तरह जी लीजे
दम घुटे भी तो गिला क्या करना

मेरे पीछे मिरा साया होगा
पीछे मुड़ कर भी भला क्या करना

कुछ करो यूँ कि ज़माना देखे
शोर गलियों में सदा क्या करना