EN اردو
हौसला दिल का हवादिस में बढ़ा रक्खा है | शाही शायरी
hausla dil ka hawadis mein baDha rakkha hai

ग़ज़ल

हौसला दिल का हवादिस में बढ़ा रक्खा है

मुशीर झंझान्वी

;

हौसला दिल का हवादिस में बढ़ा रक्खा है
शम्अ को मैं ने हवाओं में जला रक्खा है

देख ऐ हुस्न-ए-ख़ुद-आरा मिरे दिल की वुसअत
तेरे ग़म को ग़म-ए-दौराँ से जुदा रक्खा है

मैं तलातुम में भी साहिल की ख़बर रखता हूँ
मैं ने हर मौज को साहिल से मिला रक्खा है

इक तिरे नाम से रिश्ता हो बस इतनी सी है बात
वर्ना इस सुब्हा-ओ-ज़ुन्नार में क्या रक्खा है

अब मैं इक जल्वा-ए-बे-रंग का शैदाई हूँ
हर चराग़-ए-हरम-ओ-दैर बुझा रक्खा है

सरगुज़िश्त-ए-दिल-ए-बेताब सुना दी लेकिन
ग़म-गुसारों से तिरा नाम छुपा रक्खा है