हस्ती है अदम मिरी नज़र में
सूझी है ये एक उम्र भर में
ओ आँख चुरा के जाने वाले
हम भी थे कभी तिरी नज़र में
फैलाती है पाँव हसरत-ए-दीद
ठंडक जो मिली है चश्म-ए-तर में
कोई न हिजाब काम आया
देखा तो वो थे मिरी नज़र में
कम-ज़र्फ़ थे सारे ग़ुंचा ओ गुल
क्या फूले हैं एक मुश्त-ए-ज़र में
इतना भी न हो कोई हयादार
देखा तो समा गए नज़र में
तारे ये नहीं हैं आख़िर-ए-शब
कुछ फूल हैं दामन-ए-सहर में
है उम्र-ए-रवाँ का शम्अ में रंग
घर बैठे गुज़रती है सफ़र में
दुनिया है 'जलील' हाथ उठाए
बैठे हैं किसी की रहगुज़र में
ग़ज़ल
हस्ती है अदम मिरी नज़र में
जलील मानिकपूरी