हश्र-आफ़रीं है कूचा-ए-जानाना आज-कल
बहकी हुई है ख़ू-ए-मुहिब्बाना आज-कल
फिर बिक रही है जिंस-ए-वफ़ा कौड़ियों के मोल
फिर हर वफ़ा-शिआ'र है बेगाना आज-कल
फिर उठ रही हैं दश्त-ओ-बयाबाँ की रौनक़ें
फिर हर जुनूँ-फ़रोश है फ़रज़ाना आज-कल
फिर शोला-कार हैं चमनिस्तान-ए-लाला-ज़ार
फिर बिजलियाँ हैं रौनक़-ए-काशाना आज-कल
फिर हर जुनूँ-सरिश्त ख़िरद से है बहरा-वर
फिर खो गया तक़द्दुस-ए-वीराना आज-कल
हर दिल में जल्वा-रेज़ है फिर जज़्बा-ए-ख़ुदी
अन्क़ा है एतबार-ए-मुलूकाना आज-कल
फिर मिट गए दिलों से जुनूँ-कार वलवले
फिर बे-नवा हैं सलमा-ओ-रेहाना आज-कल
फिर सात्गीं उंडेल के साक़ी ने रख दिए
उठती है हर निगाह हरीसाना आज-कल
अफ़्साना बन गई वो रक़ाबत वो चश्मकें
दस्त-ए-करम है दस्त-ए-हरीसाना आज-कल
'मज़हर' हदीस-ए-दर्द है अपनी हर एक बात
हर अश्क-ए-ग़म है ग़ैरत-ए-दुरदाना आज-कल

ग़ज़ल
हश्र-आफ़रीं है कूचा-ए-जानाना आज-कल
सय्यद मज़हर गिलानी