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हरीम-ए-नाज़ कहाँ और सर-ए-नियाज़ कहाँ | शाही शायरी
harim-e-naz kahan aur sar-e-niyaz kahan

ग़ज़ल

हरीम-ए-नाज़ कहाँ और सर-ए-नियाज़ कहाँ

पंडित जगमोहन नाथ रैना शौक़

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हरीम-ए-नाज़ कहाँ और सर-ए-नियाज़ कहाँ
कहाँ का सज्दा किसे होश है नमाज़ कहाँ

मुझे ख़बर ही नहीं है हरीम-ए-नाज़ कहाँ
नियाज़-मंद कहाँ और बे-नियाज़ कहाँ

पड़ी है क्या उसे हसरत ज़दों में आने की
ये मेरी बज़्म कहाँ और वो महव-ए-नाज़ कहाँ

ये माना हुस्न-ए-हक़ीक़त अयाँ मजाज़ में है
मगर वो जल्वा है ऐ चश्म-ए-इम्तियाज़ कहाँ

इलाज किस का करेगा ये पूछता क्या है
बताएँ क्या तुझे है दर्द चारासाज़ कहाँ

कभी तो मिलती थी हिज्र-ओ-विसाल में लज़्ज़त
मगर बुझी हुई दिल में वो सोज़-ओ-साज़ कहाँ

दुआएँ माँगता है शैख़ क्यूँ मआ'ज़-अल्लाह
ख़ुदा का नाम ले तौबा का दर है बाज़ कहाँ

बड़े मज़े से गुज़रती है बादा-ख़्वारों की
ब-जुज़ शराब ख़याल-ए-शब-ए-दराज़ कहाँ

मिला वो बे-ख़ुदी-ए-शौक़ में मज़ा ऐ 'शौक़'
जुनून-ओ-इश्क़ में बाक़ी है इम्तियाज़ कहाँ