हर्फ़ अपने ही मआनी की तरह होता है
प्यास का ज़ाइक़ा पानी की तरह होता है
मैं भी रुकता हूँ मगर रेग-ए-रवाँ की सूरत
मेरा ठहराव रवानी की तरह होता है
तेरे जाते ही मैं शिकनों से न भर जाऊँ कहीं
क्यूँ जुदा मुझ से जवानी की तरह होता है
जिस्म थकता नहीं चलने से कि वहशत का सफ़र
ख़्वाब में नक़्ल-ए-मकानी की तरह होता है
चाँद ढलता है तो उस का भी मुझे दुख 'फ़ैसल'
किसी गुम-गश्ता निशानी की तरह होता है
ग़ज़ल
हर्फ़ अपने ही मआनी की तरह होता है
फ़ैसल अजमी