हर तरफ़ है उस से मेरे दिल के लग जाने में धूम
बुलबुल-ओ-गुल में है चह-चह शम्-ओ-परवाने में धूम
फ़ित्ना-गर है नाज़-ओ-इश्वा उस की चश्म-ए-शोख़ में
जूँ मचावें पी के मय बदमस्त मय-ख़ाने में धूम
याद में अपनी है शायद वो फ़रामुश-कार भी
दिल करे है मुझ से उस की याद दिलवाने में धूम
जिस तरह बाद-ए-ख़िज़ाँ-दीदा में आती है बहार
शहर में होती है उस के मेरे घर आने में धूम
नौबत औरों की तो ऐ साक़ी सुबू-पर्दाज़ है
क्या मचाई है हमारे एक पैमाने में धूम
जूँ बुलंदी से गिरे है ख़ाक पर कोई ज़ईफ़
है मिरी उस शोख़ की नज़रों से गिर जाने में धूम
देख तो ले सेर हो कर तुझ को ये ख़ाना-ख़राब
आते ही क्या है तिरी इतनी भी घर जाने में धूम
बरहमन होने को आता है नया शैख़ आज कौन
हो रही है हर तरफ़ 'हसरत' सनम-ख़ाने में धूम
ग़ज़ल
हर तरफ़ है उस से मेरे दिल के लग जाने में धूम
हसरत अज़ीमाबादी