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हर सम्त रंग-ओ-नूर का दरिया दिखाई दे | शाही शायरी
har samt rang-o-nur ka dariya dikhai de

ग़ज़ल

हर सम्त रंग-ओ-नूर का दरिया दिखाई दे

जमील यूसुफ़

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हर सम्त रंग-ओ-नूर का दरिया दिखाई दे
हर मौज-ए-रंग में तिरा चेहरा दिखाई दे

हर आइने में तेरा सरापा दिखाई दे
कोई तो इस जहान में अपना दिखाई दे

तय किस तरह हो जादा-ए-नैरंग-ए-आरज़ू
हर गाम तेरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा दिखाई दे

किरनें गुरेज़-पा हैं तो ख़ुश्बू बहाना-जू
ऐ काश कोई अपना शनासा दिखाई दे

इक दामन-ए-नज़र कि बचाना मुहाल है
इक शोला-ए-बदन कि लपकता दिखाई दे

दुनिया-ए-रंग-ओ-नूर बहुत बे-कराँ सही
पेश-ए-नज़र जो तू है तो फिर क्या दिखाई दे