हर सम्त रंग-ओ-नूर का दरिया दिखाई दे
हर मौज-ए-रंग में तिरा चेहरा दिखाई दे
हर आइने में तेरा सरापा दिखाई दे
कोई तो इस जहान में अपना दिखाई दे
तय किस तरह हो जादा-ए-नैरंग-ए-आरज़ू
हर गाम तेरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा दिखाई दे
किरनें गुरेज़-पा हैं तो ख़ुश्बू बहाना-जू
ऐ काश कोई अपना शनासा दिखाई दे
इक दामन-ए-नज़र कि बचाना मुहाल है
इक शोला-ए-बदन कि लपकता दिखाई दे
दुनिया-ए-रंग-ओ-नूर बहुत बे-कराँ सही
पेश-ए-नज़र जो तू है तो फिर क्या दिखाई दे
ग़ज़ल
हर सम्त रंग-ओ-नूर का दरिया दिखाई दे
जमील यूसुफ़