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हर क़दम हादसे हर नफ़्स तल्ख़ियाँ | शाही शायरी
har qadam hadse har nafs talKHiyan

ग़ज़ल

हर क़दम हादसे हर नफ़्स तल्ख़ियाँ

लता हया

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हर क़दम हादसे हर नफ़्स तल्ख़ियाँ
ज़िंदगी बर्क़ तूफ़ाँ ख़िज़ाँ आँधियाँ

रफ़्ता रफ़्ता यही बोझ लगने लगीं
क्यूँ बड़ी हो गईं माँ तिरी बेटियाँ

मेरी दुनिया तिरी ज़ात में क़ैद है
मुझ को ख़ैरात में दे न आज़ादियाँ

तीरगी ख़ामुशी बेबसी तिश्नगी
हिज्र की रात में ख़ामियाँ ख़ामियाँ

आप ही आंधियों से उलझते रहे
मैं तो लाई थी दामन में पुरवाइयाँ

मैं किताबों में रख्खूँ ये फ़ितरत नहीं
फूल सूखे हुए बे-ज़बाँ तितलियाँ

ये सहीफ़ा नहीं मेरी रूदाद है
इस का उनवान है तल्ख़ियाँ तल्ख़ियाँ

याद क्या है कोई मुझ से पूछे 'हया'
एक एहसास की चंद परछाइयाँ