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हर परी-वश का ए'तिबार करो | शाही शायरी
har pari-wash ka eatibar karo

ग़ज़ल

हर परी-वश का ए'तिबार करो

शाहिद इश्क़ी

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हर परी-वश का ए'तिबार करो
ज़िंदगी सिर्फ़ इंतिज़ार करो

हम से नफ़रत करो कि प्यार करो
कोई रिश्ता तो उस्तुवार करो

हम हैं लज़्ज़त-कश-ए-गुनाह-ए-वफ़ा
दोस्तो हम को संगसार करो

ज़िंदगी हो कि मय कि सच्चाई
तल्ख़ जो शय हो उस से प्यार करो

हर जनम पर ब-याद-ए-सर्व-क़दाँ
जाँ सुपुर्द-ए-फ़राज़-ए-दार करो

अपने दामन की चंद कलियों से
तुम न अंदाज़ा-ए-बहार करो

गुल के मानिंद चाक चाक हो दिल
इतना शाइस्ता-ए-बहार करो

हम-सफ़र जब भी हो निगार-ए-ग़ज़ल
रविश-ए-ख़ास इख़्तियार करो