हर नफ़स मिन्नत-कश-ए-आलाम है
ज़िंदगी शायद इसी का नाम है
एक आँसू और वो भी सर्फ़-ए-ज़ब्त
क्या यही उम्मीद का अंजाम है
सरगुज़श्त-ए-इश्क़ अफ़्साना नहीं
ज़ीनत-ए-उन्वान तेरा नाम है
हुस्न की तफ़्सीर भी कुछ कीजिए
इश्क़ बे-शक इक ख़याल-ए-ख़ाम है
इश्क़ की बे-ताबियाँ होशियार हों
अहल-ए-दिल पर ज़ब्त का इल्ज़ाम है
ग़ज़ल
हर नफ़स मिन्नत-कश-ए-आलाम है
अकबर हैदरी