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हर लहज़ा मकीं दिल में तिरी याद रहेगी | शाही शायरी
har lahza makin dil mein teri yaad rahegi

ग़ज़ल

हर लहज़ा मकीं दिल में तिरी याद रहेगी

कँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर

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हर लहज़ा मकीं दिल में तिरी याद रहेगी
बस्ती ये उजड़ने पे भी आबाद रहेगी

है हस्ती-ए-आशिक़ का बस इतना ही फ़साना
बर्बाद थी बर्बाद है बर्बाद रहेगी

है इश्क़ वो नेमत जो ख़रीदी नहीं जाती
ये शय है ख़ुदा-दाद ख़ुदा-दाद रहेगी

वो आए भी तो ज़ब्त से लब हिल न सकेंगे
फ़रियाद मिरी तिश्ना-ए-फ़रियाद रहेगी

ये हुस्न-ए-सितम-कोश सितम-कोश है कब तक
कब तक ये नज़र बानी-ए-बेदाद रहेगी

वो ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ का सँवारे न सँवरना
वो उन के बिगड़ने की अदा याद रहेगी