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हर इक ने कहा क्यूँ तुझे आराम न आया | शाही शायरी
har ek ne kaha kyun tujhe aaram na aaya

ग़ज़ल

हर इक ने कहा क्यूँ तुझे आराम न आया

मुस्तफ़ा ज़ैदी

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हर इक ने कहा क्यूँ तुझे आराम न आया
सुनते रहे हम लब पे तिरा नाम न आया

दीवाने को तकती हैं तिरे शहर की गलियाँ
निकला तो इधर लौट के बद-नाम न आया

मत पूछ कि हम ज़ब्त की किस राह से गुज़रे
ये देख कि तुझ पर कोई इल्ज़ाम न आया

क्या जानिए क्या बीत गई दिन के सफ़र में
वो मुंतज़िर-ए-शाम सर-ए-शाम न आया

ये तिश्नगियाँ कल भी थीं और आज भी 'ज़ैदी'
उस होंट का साया भी मिरे काम न आया