हर इक धड़कन अजब आहट
परिंदों जैसी घबराहट
मिरे लहजे में शीरीनी
मिरी आँखों में कड़वाहट
मिरी पहचान है शायद
मिरे हिस्से की उकताहट
सिमटता शेर हैअत में
बदन की सी ये गदराहट
मिस्र मैं फ़न मिरा ज़िद पर
ये बालक हट वो तिर्याहट
उजाले डस न लें इस को
बचा रक्खो ये धुंदलाहट
लहू की सीढ़ियों पर है
कोई बढ़ती हुई आहट
ग़ज़ल
हर इक धड़कन अजब आहट
अब्दुल अहद साज़