हर एक पल की उदासी को जानता है तो आ
मिरे वजूद को तू दिल से मानता है तो आ
वफ़ा के शहर में अब लोग झूट बोलते हैं
तू आ रहा है मगर सच को मानता है तो आ
मिरे दिए ने अंधेरे से दोस्ती कर ली
मुझे तू अपने उजाले में जानता है तो आ
हयात सिर्फ़ तिरे मोतियों का नाम नहीं
दिलों की बिखरी हुई ख़ाक छानता है तो आ
तू मेरे गाँव के हिस्से की छाँव भी ले जा
मगर बदन पे कभी धूप तानता है तो आ
ग़ज़ल
हर एक पल की उदासी को जानता है तो आ
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर