हर दम शगुफ़्ता-तर जो हँसी में दहन हुआ
ग़ुंचे से पहले गुल हुआ गुल से चमन हुआ
ज़ाहिद हुआ असाम हुआ बरहमन हुआ
इस रह में रहनुमा जो बना राहज़न हुआ
सूरत बदल गई कोई पहचानता नहीं
आशिक़ तिरा वतन में ग़रीब-उल-वतन हुआ
क़द सर्व नर्गिस आँख दहन ग़ुंचा गुल एज़ार
जल्वे से उस के ख़ाना-ए-वीराँ चमन हुआ
ग़ैरों ने बैठने न दिया जब कहीं मुझे
मैं अंजुमन में मुन्तज़िम-ए-अंजुमन हुआ
तब-ए-जफ़ा-शिआ'र की तफ़रीह के लिए
नाला मिरा तराना-ए-मुर्ग़-ए-चमन हुआ
'मुश्ताक़' सूफ़ियों में तो ताइब हुआ था कल
सुनता हूँ आज रिंदों में तौबा-शिकन हुआ
ग़ज़ल
हर दम शगुफ़्ता-तर जो हँसी में दहन हुआ
मुंशी बिहारी लाल मुश्ताक़ देहलवी