हर-चंद हुस्न-साज़ हूँ पैकर-तराश हूँ
लेकिन ख़द आइने की तरह पाश पाश हूँ
दिल ही की धड़कनों से थी रफ़्तार-ए-ज़िंदगी
जब दिल ही मर चुका है तो फिर ज़िंदा लाश हूँ
आठों पहर सुकून मयस्सर नहीं मुझे
हर लम्हा जो कसकती रहे वो ख़राश हूँ
तस्वीर-ए-अहद-ए-नौ है मुजस्सम मिरा वजूद
आलाम-ए-रोज़गार हूँ फ़िक्र-ए-मआ'श हूँ
मेरे जुनून-ए-शौक़ की मंज़िल नहीं कोई
या'नी रह-ए-तलब में सरापा तलाश हूँ
'वाहिद' कोई भी उस की न तश्ख़ीस कर सका
वो कौन सा मरज़ है जो साहब-फ़राश हूँ
ग़ज़ल
हर-चंद हुस्न-साज़ हूँ पैकर-तराश हूँ
वाहिद प्रेमी