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हर-चंद हुस्न-साज़ हूँ पैकर-तराश हूँ | शाही शायरी
har-chand husn-saz hun paikar-tarash hun

ग़ज़ल

हर-चंद हुस्न-साज़ हूँ पैकर-तराश हूँ

वाहिद प्रेमी

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हर-चंद हुस्न-साज़ हूँ पैकर-तराश हूँ
लेकिन ख़द आइने की तरह पाश पाश हूँ

दिल ही की धड़कनों से थी रफ़्तार-ए-ज़िंदगी
जब दिल ही मर चुका है तो फिर ज़िंदा लाश हूँ

आठों पहर सुकून मयस्सर नहीं मुझे
हर लम्हा जो कसकती रहे वो ख़राश हूँ

तस्वीर-ए-अहद-ए-नौ है मुजस्सम मिरा वजूद
आलाम-ए-रोज़गार हूँ फ़िक्र-ए-मआ'श हूँ

मेरे जुनून-ए-शौक़ की मंज़िल नहीं कोई
या'नी रह-ए-तलब में सरापा तलाश हूँ

'वाहिद' कोई भी उस की न तश्ख़ीस कर सका
वो कौन सा मरज़ है जो साहब-फ़राश हूँ